तब मैं 11 साल का था, जनवरी का महीना था और कड़ाके की ठंड पड़ रही थी। रात को बहुत ज्यादा ठंड होने के कारण मैं-माँ और दीदी “ओबरा ” (kitchen) में ही सोते थे। पापा दिल्ली में काम करते थे।
गॉव के आसमान में तारे साफ नजर आते थे पर उस रात को मौसम ख़राब था और तेज हवा थी। उस समय हमारे गॉव में बिजली नहीं थी पर बिजली की फिटिंग लगभग सभी घरों में हो चुकी थी। रोज की तरह माँ ने भैंस का दुध निकालने के बाद खाना बना लिया था और हम गरम चूल्ले के पास बिस्तर लगा के रजाई में सो गए।
अगली सुबह-
मैं नीदं में था पर दीदी की आवाज मुझे परेशान कर रही थी उसने मेरे मूह से रजाई हटाई और बोली ” ए -ला खडु -उठ दू” “भैर देख की च आज होयुं”
दीदी हमेसा मुझ से पहले उठ कर स्कूल के तैयार हो जाती थी, सर्दियों के दिनों में दिन का स्कूल होता था। हमारे घर से स्कूल सिर्फ आधे घंटे की चढ़ाई पर था इसलिए मैं तब ही उठता था जब माँ राख़ से पुता कूकर चूल्हे में चड़ा देती थीं।
मैंने दीदी से कहा ” किलै छे सुबेर-सुबेर हल्ला कन्नी, स्योंड़ दी दूँ”
दीदी बोली -: “पागल भैर देख दू” “रात-मा छकी करी बर्फ पड़ी ”
मैं ये सुनते ही उठ खड़ा हुआ “क्या बरफ पड़ी ?? सची बोल दू ” मैंने कहा।
दीदी -: “अफी देख ली दू भैर जय तै ”
मैंने जल्दी से अपनी उन की स्वेटर पहनी और जैसे ही दरवाजा खोला मुह से निकला “ये मेरी भई रडिन” “इथगा जादा बरफ़”
“हमारू ता चौक बी-नी दिखेणु”
बर्फ से सारा घर-आँगन,पेड़ -पोधे और रास्ते तक ढक गए थे।
“आज ता स्कूल जाणे छुट्टी” मैंने दीदी से कहा।
दीदी -: “बीटा दस बजी तलक घाम औन्दु। गुर्जिन मान छे तू भुला चुपचाप तैयार वेजा”।
ये सुन के मुझे थोड़ा दुःख हुआ पर फिर ये सोच के ख़ुश बी हो गया की स्कूल में दोस्तों के साथ बर्फ में खेलने का अलग ही मजा है।
मैंने दीदी से कहा “तख देख दू हमारी सीढ़ी और खूंटी पूरी बर्फन च ढ़की मैं आपरी स्कूलिया वर्दी कण मा निकालन”?
तभी माँ भी दूध की डोली ले के आ गई और बोली “गरम पाणी कितलु चढ़ो चुल्ला उन्दा”
“आज कन कपाल फूटी येः स्वर्गो, नखरी आफत वे या” “पारा पुंडा सब अल्लू ख़राब वेन” ।
माँ भीगे मन से बोली पर मैं उनकी भी परेसानी समज सकता था। धूप की किरण सामने के चाँदी जैसे पहाड़ पे सोने की चमक बिखेर रहा था।
मैंने दीदी से कहा:- “अबे-यार स्यु डालू भी पुरू बर्फन ढकी ”
दीदी -: “ता की वे ला “?
मैंने कहा -: “यार तै पर एक मारों कु घोल छो सब मरी होला ”
दीदी -: “अब खा बीटा-राम तू सौद ” हा हा।
मैंने सारे घऱ का चक्कर लगाया और नज़ारे देख -देख के मन ही मन बोलने लगा “क्या मस्त च यार”।
माँ बोलीं -: “आज ठण्ड बिजां च” “आज मीन भात नि बड़ौन “रोट्टी और राई की भुज्जी खावा ”
मैं बोला -: “माँ आज बाड़ी-बड़ों” “ख़ूब घ्युँ डाली तेः ”
मा -: ” बेटा पैली तू बडू-आदिम बण जा ” “फ़िर तू जू बोल्लु वी खिलौलु”।
मैं मुस्कुराने लगा सच में वो दिन कभी लौट के नहीं आएंगे।
Thanks! I’m glad you like it :)
Nice heartwarming story.
Thanks Himanshu ji :)
What a mellow story …. Really it remind me uttrakhand’s memorable moments