Uttarakhand Stories

चकबंदी अभियान

by Manoj Bhandari
Nov 24, 2015

अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण उत्तराखंड में खेती में मेहनत और समय काफी अधिक लगता है पर चकबंदी से न सिर्फ कृषको की बिखरी हुई भूमि एक होगी साथ ही उनके आगे कृषि के नए अवसर भी खुल जायेगे जिसका सीधा असर पलायन पर पड़ेगा।

क्या है चकबंदी?

चकबंदी अभियान कृषको की बिखरी हुई कृषि भूमि जोतों को एक स्थान पर कानूनन अथवा आपसी सहमति से संटवारा कर एकत्र करने की मुहिम है। इस अभियान से एक ही जगह बड़े जोत बनने से जहा किसानो का श्रम एवं समय बचेगा वही सरकारी योजनाओं तथा ग्राम्यविकास, कृषि,बागवानी, सिंचाई, व सहवर्ती मुर्गा पालन ,मतस्य पालन, बेमोसमी सब्जी उत्पादन व जड़ीबूटी,पौध उत्पादन व फूलों की खेती आदि योजनाओं का सीधा व भरपूर लाभ किसानो को मिल पाएगा।

एक नजर गरीब क्रांति अभियान(Land consolidation Moment) पर.

पौड़ी क्षेत्र में चकबंदी को बढ़ावा देने के लिए गरीब क्रांति अभियान छेड़ा गया, ताकि सूबे में बिखरी जोत खेती लायक बने जिससे न सिर्फ खेती आसान हो साथ ही लोगों को कृषि में नए अवसर मिले जिसका सीधा असर पहाड़ों पर हो रहे पलायन पर पड़ना था। पौड़ी में इस अभियान के पीछे मुख्या योगदान गणेश सिंह ‘गरीब’ का रहा। इसकी शुरुवात पौड़ी जिले के अंतर्गत सतपुली से हुई। अभियान में लोगों को चकबंदी से अवगत करना और उसके अनिवार्यता के फायदे बताने के साथ-साथ सरकार का ध्यान खींचना था।

योगदान

उत्तराखंड के अलग-अलग क्षेत्रों में यह अभियान विभिन्न लोगों द्वारा छेड़ा गया। उत्तरकाशी में इस अभियान मे महत्वपूर्ण योगदान उत्तरकाशी ज़िला पंचायत के पूर्व अध्यक्ष स्व॰ राजेंद्र सिंह रावत ने दिया जिनहोने स्वेच्छिक(mutually agreed) चकबंदी हेतु सत्तर के दशक(70’s) मे वृहित जनजागरण अभियान छेड़ा और अपने गाँव बीफ (अब नारायनपुरी) मे इसे वर्षो की मेहनत के पश्चात धरातल पर भी उतारा,जिसका लाभ उस गाँव के कृषक उठा रहे हैं। इस अभियान मे उनके साथ उनके छोटे भाई और यमुनोत्री विधानसभा के पूर्व विधायक श्री केदार सिंह रावत भी थे। उधर पौड़ी क्षेत्र मे भी गरीब क्रांति अभियान कई वर्षो से चलाया जा रहा है।

पिता श्री बालम सिंह रावत (सरपंच साहब) व बड़े भाई श्री राजेंद्र सिंह रावत के साथ श्री केदार सिंह रावत (मध्य मे) अंतिम 60 के दशक मे

पिता श्री बालम सिंह रावत (सरपंच साहब) व बड़े भाई श्री राजेंद्र सिंह रावत के साथ श्री केदार सिंह रावत (मध्य मे) अंतिम 60 के दशक मे

उत्तराखंड राज्य अलग होने पर पहली निर्वाचित सरकार पंडित नारायण दत्त तिवारी के नेतृत्व मे बनी, उस सरकार ने भी भूमि सुधार परिषद का गठन कर इस दिशा मे कुछ कदम बढ़ाकर कार्य किया किन्तु दिशा एवं उद्देश्य स्पष्ट न होने के कारण कोई प्रतिफल नहीं निकल सका। दूसरी निर्वाचित सरकार बी॰ सी ॰ खंडूडी के नेतृत्व मे बनी, तब यमुनोत्री क्षेत्र के विधायक रहे श्री केदार सिंह रावत ने विधानसभा मे चकबंदी पर व्यापक चर्चा की जिसके परिणाम स्वरूप बीफ (नारायनपुरी) गाँव मे हुई स्वेच्छिक चकबंदी को भू अभिलेखो मे दर्ज़ कराने का शासनादेश हुआ तथा तत्कालीन कृषि मंत्री श्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत की अध्यक्षता मे चकबंदी समिति का गठन हुआ जिसमे तत्कालीन विधायक श्री केदार सिंह रावत भी सम्मिलित किए गए। उस समिति के सदस्य सचिव श्री सुभाष कुमार नियुक्त हुए जो अब मुख्य सचिव पद से सेवा निवृत्त हो चुके हैं। समिति गठन व बीफ गाँव की स्वेच्छिक चकबंदी को भू अभिलेखो मे दर्ज़ करने का शासनादेश भी कारगर नहीं हो पाया क्यूंकी तत्कालीन सरकार की इक्षाशक्ति व अभिरुचि इस जन अभियान की तरफ कम ही रही, लिहाजा नतीजा भी सिफर रहा।

वर्तमान स्थिति

वर्तमान हरीश रावत सरकार ने इस अभियान को गंभीरता से लिया है जिसके फलस्वरूप उत्तराखंड मे चकबंदी का पृथक मंत्रालय गठित किया गया है जिसके मंत्री डा॰ हरक सिंह रावत हैं। सरकार द्वारा इस हेतु पर्वतीय चकबंदी सलाहकार समिति का गठन भी किया गया है जिसके अध्यक्ष इस क्षेत्र के अनुभवी पूर्व विधायक श्री केदार सिंह रावत को बनाया गया है। उपाध्यक्ष के रूप मे श्री दशरथ चन्द्र एवं श्री गणेश सिंह गरीब को नियुक्त किया गया है। समिति ने अपने उद्देश्य की ओर तेज़ी से कार्यवाही प्रारम्भ की है तथा चकबंदी हेतु उत्तराखंड भूमि सुधार एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम का प्रारूप 6 अक्टूबर 2015 को सरकार को माननीय मुख्यमंत्री के हाथो सौप दिया है। समिति के कार्यो की सराहना सभी दलो, वर्गो ने की व मुख्यमंत्री ने भी माना की रेकॉर्ड समय मे समिति ने अपना पहला चरण पूर्ण किया है। माननीय मुख्यमंत्री ने 3 माह जनता से रायशुमारी के पश्चात अधिनियम पारित करने की बात कही है। सरकार ने प्रथम चरण मे इस अधिनियम को 250 गावों मे लागू करने का ध्येय रखा है। अधिनियम के प्रारूप मे समिति ने पर्वतीय भौगोलिक परिस्थितियों का पूर्ण ध्यान रखा है साथ ही स्वेच्छिक चकबंदी का भी प्रावधान रखा है। स्वेच्छिक चकबंदी करने वाले ग्रामो को पुरीस्कृत करने का प्रावधान भी रखा गया है। कई ग्रामसभाओ ने अभी से ही चकबंदी अपनाने की सहमति को समिति व सरकार को अवगत कराया है।

निष्कर्ष

फ़िलहाल उत्तराखंड में चकबंदी के लिए लोगों का जुकाव कम है इसका मुख्या कारण लोगों को इसके बारे में जानकारी न होना है पर अब ऐसा प्रतीत होता है की अब चकबंदी का अभियान उत्तराखंड मे मूर्तरूप ले सकेगा जिस से उत्तराखंड मे कृषि स्वरोजगार सृजन से पलायन भी रुकेगा और आर्थिकी मजबूत होने के साथ ही कृषको का समय व श्रम का भी अपव्यय रुकेगा।

चकबंदी द्वारा एक जगह पर इकट्ठा हुए जोत

चकबंदी द्वारा एक जगह पर इकट्ठा हुए जोत

Manoj Bhandari


Comments are closed.