गंगा: भारत की विभिन्न संस्कृतियों और जन-जन पोषित करने वाली गंगा नदी का उद्गम गौमुख उत्तराखंड में स्थित है। विभिन्न जल धाराओं से मिलकर बनी गंगा नदी को अनेक नामों से जाना जाता है । उत्तराखंड में गंगा नदी को देवी स्वरुप मान कर, उत्तरकाशी में स्थापित गंगोत्री मंदिर में पूजा की जाती है। कहा जाता है “भागीरथी ने सर्वप्रथम इसी स्थान पर भूलोक को स्पर्श किया था”। गंगोत्री मंदिर से 19 किoमीo दूर गौमुख हिमनद है, जिसका मूल संतोपथ समूह की चोटियों में है, भागीरथी नदी का प्रमुख स्रोत यही माना जाता है।
ज्येष्ठ मास शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि “गंगा दशहरा” के दिन गंगा का अवतरण भूलोक पर हुआ। कहा जाता है गंगा भगवान् विष्णु के पैरों से उत्पन्न हुई है, तीनो देवो, ब्रह्मा, विष्णु और महादेव के स्पर्श के कारण गंगा पवित्र मानी जाती है। ये भी मान्यता है की गंगा का अस्तित्व तीनो लोकों, स्वर्गलोक, पृथ्वीलोक, और पाताललोक में विद्यमान है। गंगा के पृथ्वी पर आने से सबंधित कथा बताती है की, इश्वाकु वंश के राजा सगर ने जब अश्वमेघ यज्ञ किया तो राजा इंद्र ने अपना स्वर्ग का राज्य छिन जाने के भय से, राजा सगर के अश्वमेघ यज्ञ के अश्व को छल करके हर लिया और कपिल मुनि के आश्रम में ले जाकर बांध दिया। यज्ञ के अश्व की खोज में जब राजा सगर के साठ हज़ार पुत्र कपिल मुनि के आश्रम पहुंचे तो अश्व को आश्रम में देख कपिल मुनि का अपमान करने लगे। कपिल मुनि ने इस अपमान से क्रोधित होकर, राजा सगर के साठ हज़ार पुत्रों को अपने तपोबल से भस्म कर दिया। इस आकस्मिक मृत्यु के कारण बिना अंतिम संस्कार के राजा सगर के पुत्रों की आत्माएं प्रेत बनकर विचरने लगीं। उनको मुक्ति दिलाने के लिए राजा सगर के पुत्र अंशुमान, और फिर उनके अंशुमान के पुत्र दिलीप ने घोर तप किया परंतु वे विफल रहे। तत्पश्चात दिलीप के पुत्र भगीरथ के गंगा को पृथ्वी पर लाने के घोर तप आरम्भ किया, ताकि पवित्र गंगा के स्पर्श से उनके पूर्वजो को मोक्ष मिल सके।
भगीरथ के अनेक वर्षो के तप से गंगा पृथ्वी पर अवतरित हुई उसके वेग को भगवान शिव ने अपनी जटाओं से संभाला और एक गंगा की एक धारा पृथ्वी पर भेज दी। हिमालय पर गिरते ही गंगा सात अन्य धाराओं में विभक्त हो गयी। ह्लादिनी, पावनी और नलिनी पूर्व की ओर प्रवाहित हुईं, तथा अन्य तीन सुचक्षु, सीता और सिन्धु धाराएं पश्चिम की ओर प्रवाहित हुईं और सातवीं धारा महाराज भगीरथ के पीछे-पीछे चल पड़ी, भगीरथ का अनुसरण करने के कारण ही इस धारा का नाम भागीरथी पड़ा। भगीरथ के पीछे चलते-चलते वह उस स्थान पर पहुंची जहाँ सगर पुत्रो की राख थी और पवित्र गंगा ने राजा सगर के पुत्रों को मुक्ति प्रदान करी।
यमुना: यमनोत्री धाम यमुना नदी को समर्पित मंदिर है। यह तीर्थ उत्तरकाशी के रवाईं क्षेत्र के गीठ पट्टी में स्थित है। भगवान सूर्य की पुत्री यमुना, यम की बहन है इसी कारण वश यह कहा जाता है की यमनोत्री धाम में यदि व्यक्ति यमुना नदी में स्नान कर ले तो अकाल मृत्यु को प्राप्त नहीं होता। यमुनोत्री धाम के विषय में पौराणिक कथा प्रचलित है की कभी यहाँ असित ऋषि का आश्रम था। वह इस आश्रम रह कर यमुना नदी के उद्गम तक प्रत्येक दिन जाया करते थे।
समय बीतता गया और वे वृद्ध हो चले उनके लिए यमुना के उद्गम तक जाना असंभव हो गया। यमुना ने असित ऋषि की भक्ति पर प्रसन्न हो कर अपना प्रवाह बदल डाला और उनके आश्रम के निकट से प्रवाहित होने लगी। असित ऋषि ने यहाँ यमुना का मंदिर बना पूजा आरंभ करी। यमुना का एक नाम कालिंदी भी है।
सरस्वती: बदरीनाथ से कुछ दुरी पर माणा ग्राम स्तिथ है। माणा ग्राम में ही सरस्वती नदी का मंदिर स्थापित है। सरस्वती नदी के निकट रह कर ही ऋषियों ने वेद की रचना करी और वैदिक ज्ञान प्राप्त किया। ऋग्वेद के “नदी सूक्त” में भी सरस्वती नदी का वर्णन मिलता है। सरस्वती नदी से सम्बंधित पौराणिक कथा बताती है की, जब गणेश जी व्यास ऋषि की वाणी को सुनकर महाभारत की रचना कर रहे थे तो सरस्वती नदी अपने पूरे वेग से बह कर, बहुत शोर कर रही थी।
गणेश जी ने सरस्वती से आग्रह कर कहा कि कृपा करके शोर कम करें, मुझे कार्य में व्यवधान हो रहा है, लेकिन सरस्वती जी नहीं रुकीं। इससे रुष्ट होकर गणेश जी ने सरस्वती को श्राप दिया कि आज के बाद तुम स्थान से आगे विलुप्त हो जाओगी।
भारत की तीन महान् नदियो के उद्गम स्थलों पर स्थापित ये पौराणिक मंदिर मोक्ष दायिनी है। यहाँ की पौराणिक कथाएं पढ़ कर आप यहाँ के आध्यात्मिक महत्व को समझ सकते है। आशा है आप यहाँ आकर इन पुण्य नदिया का आशीर्वाद और प्रसाद अवश्य ही ग्रहण करेंगे।
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