आज उत्तराखंड के महान स्वतंत्रता संग्रामी श्री देब सुमन जी की 100वीं जयंती है। हम सभी को उनके अमर बलिदान के बारे में पता होना चाहिए। सुमन जी का जनम 25 May 1916 को टिहरी के पट्टी बमुंड, जौल्ली गाँव में हुआ था। उनके पिता इलाके के प्रख्यात वैद्य थे।
उस समय पूरा भारत ब्रिटिश सरकार के खिलाफ लड़ रहा था। सुमन जी गाँधी जी के बहुत बड़े प्रशंसक थे, वे हमेशा सत्याग्रह के सिधान्तों पर चले और उन्होंने हमेशा अहिंसा की राह पर चल कर गढ़वाल के राजा(टिहरी रियासत) व ब्रिटिश सरकार के खिलाफ विरोद प्रदर्शन किये। सुन्दरलाल बहुगुणा उनके साथी रहे हैं जो स्वयं भी गाँधी वादी हैं।
उन्होंने टिहरी के राजा, जिन्हें बुलांदा बद्री (बोलते हुए बद्री) के नाम से पुकारा जाता था से टिहरी (गढ़वाल रियासत) को पूरी तरह स्वतंत्र करने की मांग करी । 30 दिसंबर 1943 को उन्हें राज-द्रोही घोषित कर गिरफ्तार कर लिया गया। जेल में उनपर बहुत अत्याचार हुए। उन्हें भारी बेड़ियों में बांधा जाता था और खाने में कंगकड-पत्थर और रेत मिली रोटी जबरन खिलाई जाती थी। जेलर मोहन सिंह और जेल के अन्य सदस्यों ने उन्हें और भी कई यातनाएं दी।
इतनी यातनाओ के बाद श्रीदेव शुमन जी जेल के अंदर ही अनशन पर बैठ गए. जेल के कर्मचारियों ने उन्हें जबरन खिलाने की कोसिस करी पर हो कामयाब न हो पाए। 84 दिनों से अनशन पर रहने और जेल में 209 दिन बिताने के बाद 25 July 1944 को वह शहीद हो गए। उनका शरीर बिना किसी अंतिम संस्कार के भिलंगना नदी में फेंक दिया गया था पर वह हमेशा के लिए अमर हो गए।