A old garhwali song by regional singers, sung in a very classical style.
चाय कु पुड़िया बौजी चाय कु पुड़िया,
तीं हाती बते दी बाउजी झीं हटी चुडिया।
उत्तराखंड के पहाड़ों की हसीं वादियों में कभी ये गीत गूंजते थे, जो आजकल बिलकुल भी सुनाई नहीं देते है और विलुप्त हो गए हैं। ये गीत अगर कहीं सुनो तो वो दिन याद आते हैं जब इन मनमोहक गीतों के धुनें उत्तराखंड के पहाड़ों की वादियों में चैत-बैसाख के महीने में सुनाई देती थी।