Uttarakhand Stories

Are dams useful for Uttarakhand or Not?

by Manoj Bhandari
Oct 30, 2015

Result of Facebook Daily Contest #28

And the winner is:

Are Dams useful for Uttarakhand or Not?

Yogesh Pandey

Due to its geography and a wide network of rivers and canals, Uttarakhand is a potential source of hydropower. In the present scenario where our conventional asset of electric power i.e. coal-based plants having a shortage of fuels(import of coal is increasing) and potent effect on the environment (air pollution, global warming) this renewable resource can prove to be a greater asset in the near future. No doubt that hydropower tapping have an impact on the environment. Mining and construction change the ecosystem. Human rehabilitation is an important factor. Uttarakhand is mostly covered by forests and some of the power projects are near to the national parks or sanctuaries and biosphere reserves. Hence, getting environmental clearance is a major challenge. Also, employment issues raised by the displaced people poses challenge. But on the other side where power demands are increasing day by day on the account of population, industry expansion etc. we must look out for the non-conventional resources like water power. After the floods of 2013 in Uttarakhand, there must be a re-evaluation of the new power projects. Feasibility study and proper assessment by the government is mandatory before giving clearance to these projects. Hence, the government needs to work fast. The government should work on PPP model for faster development in the water power sector. Electricity generation is an important parameter in the economic development of the Uttarakhand as it generates revenue. So there is an immediate need to give clearance to the multi-purpose hydro projects keeping in view the environment and the people. Appropriate compensation and job should be guaranteed for the displaced by the government.

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Besides the above winners, we also found the following comments worth appreciation:

Himanshu Bisht

जहा डैम एक ओर विकास की पहचान है वही दूसरी तरफ तबाही का मंजर भी है। अगर हम इसे सकारात्मक तौर पर देखते है तो ये उत्तराखंड के लिए बरदान है जिससे निम्न फायदे हो सकते है|

बिजली की आपूर्ति- जिससे लघु और कुटीर उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा और शिक्षा के लिए बच्
चों को पड़ने में फायदा होगा जिससे उनको लैंप की आवश्यकता नही पड़ेगी|

सिचाई के लिए भरपूर पानी- डैम बनने से फसलों को पर्याप्त पानी मिलेगा जिससे अनाज बाहर से आयत करने की आवश्यकता नई पड़ेगी|

रोजगार के साधन में बृद्धि होगी और पलायन पर रोक लगेगी।

आवश्यकता से अधिक की वस्तुवों को हम निर्यात करके उत्तराखंड के विकास को आगे बढ़ा सकते है।

अगर नकारात्मक चीजें देखी जाएँ तो लाखों हेक्टेयर उपजाऊ जमीन, कीमती जंगल, और पहाड़ों का जलमंग्न हो जाना।

प्राकृतिक हलचलों जैसे भूकम्प और जवालामुखी आदि के उतपन्न होने से विनाश या तबाही की आशंका हो सकती है जो पूरी की पूरी संस्कृति और समाज को समाप्त हो सकता है।

इसलिए डैम उत्तराखंड के लिए बरदान और अभिश्राप दोनों है।

Setu Chauhan

जब उत्तराखंड को सन 2000 में अलग किया गया साथ मेंऔरअन्य 2 राज्य झारखण्ड और छत्तीसगढ़ तो पहली बार आर्थिक आधार पे ये प्रदेश बनाये गए। इस से पहले राज्य उनकी भाषा के आधार पर बनाये जाते थे। कहा ये गया की छोटा राज्य का प्रशासन अच्छे से चलता है औरबड़े राज्य होने के कारन जिन लोगो पे सरकार ध्यान नहीं दे पाती अब उन लोगो पे सरकार ध्यान दे सकेगी। पर छोटा राज्य होने के कारन एक समस्या और आती है वो है आय के स्रोत, या जिसे हम resource कहते है। तो इसी वजह से उतराखंड को Special State का दर्जा मिला जिसके अन्तरगत राज्य को केंद्रीय सहायता भी मिलेगी। उतराखंड पे दो ही मुख्य आय के साधन है 1- Hydro project (डैम) 2- पर्यटन। तो हाँ डैम उत्तराखंड के लिए जरूरी है। जो लोग ये कह रहे है की उसका फायेदा उत्तराखंड को नहीं होता ऐसा नहीं है, बिजली बेचे जाने से राज्य सरकार का भी हिस्सा होता है, वितरण पे केंद्र का फैसला होता है पर उस वितरण पे राज्य का भी हिस्सा होता है। और जो पॉवर प्रोजेक्ट चल रहे है वो टैक्स भी तो देंगे. छोटा राज्य में resources की कमी होती है। हर प्रदेश छत्तीसगढ़ या तेलंगाना जैसा नहीं है की रिसोर्सेज की कमी न हो। तेलंगाना आंध्र प्रदेश से अलग होते ही आंध्र प्रदेश को भी अब उत्तराखंड जैसे special स्टेट के दर्जे मे लाये जाने की मांग होने लगी है। अगर उत्तराखंड में डैम न होते तो उत्तराखंड की भी कुछ हालत झारखण्ड जैसी हो जाती। जैसे झारखण्ड बिहार से अलग होते ही बिहार पहले से प्रगती कर गया और झारखण्ड की और हालत ख़राब हो गयी।

Bhawna Naithani

नदियो मे बॉध बनाकर न केवल बिजली बनाई जा सकती है बल्कि उनसे पैदा होने वाली बिजली प्रदूषण रहित होती है इसके अलावा पानी को संरक्षित करके सिंचाई और पीने के उपयोग मे भी ला सकते हैं और नदी की बाढ पे भी काबू पाया जा सकता है परंतु इसके कुछ नुकसान भी हैं जैसे- 
१. बाध बनने से उस क्षेत्र के जीव जंतुओ तथा प्राक्रतिक वनस्पतियो का ह्रास होता है,
२. लोगो का विस्थापन( जिसका साक्षात उदाहरण टिहरी डैम है),
३. बॉध बनाते समय कई जगह पहाड़ों मे विस्फोट जिससे उनके दरकने का खतरा( हमे यह नहीं भूलना चाहिए कि हिमालय अभी भी निम्राण की अवस्था मे है और यहॉ के पहाड़ कच्चे हैं),
४. यह क्षेत्र भूकंप की द्रष्टी से अतिसंवेदनशील है किसी उच्च तीव्रता के भूकंप मे बड़े बॉध व्यापक पैमाने पर तबाही मचा सकते हैं, लेकिन इसका एक उपाय है कि बड़े बॉधों की जगह हम छोटे-छोटे बॉध बनाएं जिससे हमारी उर्जा की जरूरत भी पूरी हो और प्रक्रती का संरक्षण भी हो।

Ashutosh Ankit Rawat

उत्तराखण्ड के पास अभी जितने डेम है उतने ही ठिक है अब और डेम बनाने की जरुरत नहीं है इन डेमों के कारण उत्तराखण्ड को बहुत अधिक मात्रा में प्राकृतिक हानि पहुँच रही है जैसे जमीन का कटाव, वन सम्पदा को हानि, नदीयों के प्रवाह में कमी, जन जीवन अस्त वस्त हो रहा है अधिक मात्रा में, भूस्खलन का अधिक होना, रोडयोऐक्टिविटी की बढ़ना, बाढ़ आने का अत्यधिक खतरा, डेम के निर्माण होने के साथ प्रदूषण में वृद्धि होना, डेम के टुटने का डर, डेम के निर्माण में अत्यधिक धन का नुकसान और भी आदि अनेकों समस्या है। डेम के कारण इसलिऐ उत्तराखण्ड के अब कोई जल विधुत परियोजना नहीं बननी चाहिये उत्तराखण्ड और केन्द्र सरकार पर्यावरण को ध्यान में रखते हुऐ अब प्राकृतिक रुप में ऊर्जा बनानी चाहिऐ और उत्तराखण्ड होने वाले प्राकृतिक हानि से बचाना होगा इसके लिऐ सरकार को और हमें नये प्रयास करनें होंगे जैसे अत्यधिक सौर ऊर्जा प्लांट लगाने होंगे, पवन चक्की से ऊर्जा निर्माण करनी होगी, नयी तकनीक घर्षण ऊर्जा जो सड़कों में हम लोगों और हमारी गाड़ीयों से उतपन्न होगी उसका प्रयोग करना सीखना होगा और इनको अधिक से अधिक मात्रा में सिमित क्षेत्रों में लगाना होगा और नवीन तकनीकी ऊर्जा की सहयता लेनी होगी जोकी प्रकृति कम से कम नुकसान पहुँचाये बिना ऊर्जा का निर्माण कर सकें जिससे हमारी पृथ्वी सुंदर और स्वच्छ होगी और सुंदर उत्तराखण्ड हमेशा सुंदर रहेगा।

Kavinder Singh

Everything humans do or did in past has two sides. Sometimes it is good to move forward, and sometimes it is not. In cases of dams, we have to consider everything, especially the geography, the a number of people will get affected by it.
1. Let’s face the fact that due to migration we have really less population living in remote villages in Uttarakhand, so if we are making dams there, which are not as huge as Tehri dam, then it can useful.
2. We have to keep that in mind that hydroelectricity is one of the renewable sources of energy. And it will be beneficial to a lot of people in India not just in Uttarakhand.
But anything in excess is harmful. We should do it but never overdo it.

Vicky Naudiyal

I think dams are only useful in our state when the maximum benefit will be given to us. The major production should be given to Uttarakhand to meet its electricity needs. Priority should be given to the state and after that electricity may be distributed to other state besides electricity, we are getting employment and also an increase in a number of tourists to the state. But while sanctioning any such project government should keep in mind that our Uttarakhand is lying on the shivalik range of the Himalayas which newly built mountains and is a disturbed place from the point of view of earthquake. Hence, geological study is needed before passing any such project. further, there are other facts also which government should consider such as the natural beauty of mountains should not be affected, religious places should not be disturbed, local sentiments also to be kept in mind, and last but not the least that there should be proper arrangements for the people who would be affected by these projects. if all these points are to be taken into consideration by the government then nobody will oppose any project and the power projects will bring prosperity to our people as well as the state. Thank you!

Apurv Pant

Like every coin has two faces so this topic also has a positive side and a negative side. Dams are definitely useful for Uttarakhand. As hydro energy is the foremost source of energy in Uttarakhand then why not utilize it will full efforts. There are several villages in Uttarakhand which have shortage of electricity and there is not other option for generating electricity other than hydroelectricity. The lake constructed near the dam can be used for irrigation purpose. Dams are not the source of pollution as other conventional energy sources. Tehri Dam is constructed on the Ganga River below the confluence of its two main tributaries, Bhagirathi and Bhailangana River in the hill district of Uttaranchal. It is the world’s fifth and Asia’s largest multidimensional dam project. This dam has many benefits. It will increase about 2400 MW power capacity in Northern Zone. The dam will provide water for irrigation even during the dry season. About 60 lake residents of Delhi and UP will get drinking water. During monsoon, extra water can be stored and the states of UP, Bengal and prevented from the flood. Thus, in my opinion, dams are the best energy resource.

Prabhakar Bhatt

यहाँ पर आत्महत्या ना करें पकडे जाने पर फांसी दी जाएगी। यही बात इस डैम पर भी लागु होती है क्यूंकि यह एक ऐसी परियोजना है जिसका कोई खास फायदा अब तक तो नज़र नहीं आया और उल्टा नुकसान अधिक हुवा है। हज़ारों लोगो का पैतृक निवास खत्म हुवा। पुरानी टेहरी जैसा व्यस्त बाजार खत्म। कई गाओं के मध्य में संपर्क टुटा। सड़कों का बेवजह विस्तार जिसके फल स्वरुप कई जगह के यात्रा समय में विर्धि हुई है। कुछ ऐसे रास्तों का निर्माण हुवा जो झील के एकदम पास हैं और वहुत ही संवेदन शील है, इन रास्तों पर सफ़र करना जीवन को खतरे में डालना है। मॉल भाड़े, किराये में 30 से 40 % तक की विर्धि हुई जिसके फलस्वरूप वस्तुओं के दाम वेवजह बड़े जैसे की ईट की ऋषिकेश में कीमत 3 rs है वही घर ले जाते ले जाते 12 से 15 rs तक पड़ जाती है। आपातकालीन स्तिथि में मरीज को बड़े शह्ररो में ले जाना एक चुनोती बन गया है। वातावरण पर भी इसका सीधा प्रभाव पड़ा है जिसके फलस्वरूप यहाँ के मौसम में भी इसका असर देखा जा सकता है। भौगोलिक दृस्टि से भी देखा जाये तो ये डेम उत्तराखंड के लिए विनाश का कारन भी बन सकता हैं क्यूंकि इससे भूमि कमजोर हो रहीं हैं और धँस रही है। सुन्दर लाल जी एवम वीं डी सकलानी जी ने कई साल तक इसके लिए संघर्ष भी किया की ये डेम ना बने पर उनके प्रयास सफल नहीं हो पाये। इससे राज्य सरकार को फायदा जरूर हुवा है लेकिन जनता को इसकी बहुत बड़ी कीमत चुकानी पढ़ रही है और ये हमारे लिए मात्र सुसाइड पॉइंट बनकर रह गया है। रोजगार की दृस्टि से भी देखा जाये तो स्थानीय लोगों को इसके कोई लाभ नहीं हुये क्यूंकि जिस कंपनी द्वारा इसका निर्माण हुवा है उसने labour बाहर से ही hire किये हैं ना कि स्थानीय।

Manoj Bhandari


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