1.
उत्तराखंड हिन्दुस्तान का स्वर्ग है, यहाँ की हर जगह मुझे पसंद है और प्रिय है, रहन-सहन, बोल-चाल, खान – पान , सब कुछ अनोखा है, यहाँ का नीला आकाश, स्वच्छ हवा, उड़ते परिंदे, पहाड़, झरने, नदियाँ, सीधे सच्चे लोग, सब कुछ मनमोहक है।
चूंकि एक जगह का नाम लिखना है तो मैं नाम लिखूंगी मुक्तेश्वर का शांत , सुरम्य और बेहद सुन्दर। हिमालय दर्शन हो अथवा अति सुन्दर फूल , सब कुछ यहाँ पर है। मुझे मुक्तेश्वर इस दुनिया में सबसे ज्यादा पसंद है। वहां चौली की जाली पर से जो दृश्य नज़र आता है , वह मुझे अद्भुत लगता है। मुक्तेश्वर की बात ही निराली है और चौली की जाली जैसी जगह शायद ही कहीं और हो। मेरा मन बार बार वहीँ जाने को करता है।
2.
१९८४ की मदमहेश्वर यात्रा का आनंद अविस्मरणीय है। इससे सुंदर स्थल नहीं हो सकता। आओ जाने कैसे?
केदारनाथ होकर आए तो गौरीकुण्ड से गुप्तकाशी के बीच के मोटर का सफर एसा लगा मानो वैज्ञानिक विकास ने प्राकृतिक/आध्यात्मिक आनंद बेकार कर दिया हो। बस से उतरकर कालीमठ, राऊँ लेक, राँसी और गौंडार होकर दिन ढलने से चंद मिनट पहले श्री मद्महेश्वर पहुँच गये थे। इकलौता बंगाली पर्यटक हम तीन मित्रों की मानो प्रतीक्षा कर रहा हो। सीमांत ग्राम गौंडार से घने जंगलों और कुहरे को चीरते, खडी चढ़ाई पार करते जब यकायक समतल रास्ता शुरु हुआ तो झुकी नजरों ने भूमि के समानांतर सामने देखा। थकान न जाने कहां गायब हो गई। चारों दिशायें शिवमय नजर आने लगी।
सुंदर ढलान से पहले खड़े शिवमंदिर पर नजर पड़ी तो मन भावविभोर हो गया। मैं अपने सखा और परममित्र भगवती व हरीश के साथ अतिप्रसन्न था। युवावस्था का यह सुखद अनुभव आज भी ऊर्जा प्रदान करता है। पर्यटन का सच्चा आनंद धार्मिक स्थलों तक पैदल घुमक्कड़ी में ही निहित है। मैं मानता हूँ। सुबह कुछ और ऊँचाई पर बूढा मद्यौं के सामने खड़ा हिमालय देखा तो सोने पे सुहागा हो गया।
वो कहते हैं न –
सैर कर दुनिया की गाफ़िल,
जिंदगानी फिर कहाँ !
जिंदगी मिल भी गयी तो,
नौजवानी फिर कहां।
भारत की एक सीमा पर बसा है जनपद उत्तराखण्ड। उत्तराखंड की सीमा पर है जनपद चमोली और चमोली की सीमांत गाँव गौंडार से भी आगे है अद्भुत शिव स्थली – मद्महेश्वर। ॐ नम: शिवाय। है न सबसे सुंदर!
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मुझे उत्तराखंड के गंगोलीहाट पिथौरागढ़ की “पाताल भुवनेश्वर गुफ़ा” एक रहस्यमई अधभुत अतुल्यनीय आश्चर्यजनक गुफ़ा लगी। गुफ़ा में मानों साक्षात् भगवान शिव की नगरी समायी हो। उत्तराखंड में कुदरत की नकाशी साक्षात शिल्प पे कारीगरी की गयी। सच ऐसी अधभूत रोमांचकारी गुफ़ा प्रकति में बसी हो तो उससे अच्छा स्थान कौन सा हो सकता है देखने को मुझे यह स्थान सच में बेहद पसंद रोमांचकारी लगा धन्यवाद।
मुझे तो तुंगनाथ बढिया दर्शनीय स्थल लगता है खासकर अप्रैल मई मैं। तुंगनाथ दुनिया मैं सबसे ऊँचा शिव मंदिर है। मैं एक बार अपने कॉलेज दोस्तों के साथ घुमने गया था। उसी टाइम का एक वाकया आपको बताता हूँ सुना है की मंदिरों में जूठन इत्यादि करने से कुछ उल्टा होता है। ऐसा ही कुछ हमारे साथ हुआ था। हम सारे 25-30 दोस्त मंदिर में पहुंचे और भगवान शिव के दर्शन करने के बाद फोटो इत्यादि खिचवाये। मौसम एकदम साफ़ था कड़क धुप थी। करीब घुटनों तक बर्फ पड़ी थी फिर भी ठण्ड का इतना एहसास नही था धुप की वजह से। कुछ देर बाद हमने खाना खाने की सोची और हमारे ग्रुप्स की गर्ल्स अपने घर से खाना बनाके लाये थे। सबके सब अपनी पोटलियाँ खोल के बैठ गए मंदिर के पास ही चोखट मैं लेकिन लेकिन जैसे ही हमने खाना शुरु किया तो अचानक तेज धुप में बर्फ पड़ने लग गयी। थोडा तेज बर्फ। अचानक तेज ठण्ड। मैं तो स्वेटर पहन कर भी नहीं गया था। ठण्ड से कंपकपी होने लगी। जल्दी ही हमने खाने की पोटलियाँ बंद की मंदिर से निचे आ गये। हम मुश्किल से मंदिर से 500mtr निचे पहुंचे ही थे की बर्फ़बारी बंद हो गयी। और फिर धुप। तो फिर समझ आया माजरा क्या था। गाँव में जो बुजुर्ग कहते थे वो आज सच में देखा। भगवन शिव के लिए मन में आस्था और बढ़ गयी। फिर भगवान को नमन किया और वापस लौट आये अपने जहाँ मैं। जय बद्री विशाल। जय बाबा तुंगनाथ।
हालांकि पूरा उत्तराखंड ही पर्यटन का स्वर्ग है जिनमें से एक स्थान को चुनना बहुत ही मुश्किल है फिर भी मैं अपने पर्यटन के अनुभव से सबसे ऊपर रुद्रनाथ (Rudranath) का नाम लेना चाहूँगा। रुद्रनाथ वास्तव मैं अध्यात्म और रोमांच का एक अकल्पनीय उदहारण है। जहाँ हर मोड़ पे आपको प्रकृति का एक नया और अदभुत रूप देखने को मिलेगा और यात्रा के अंत मैं शिव के मुखस्वरूप प्रतिमा के दर्शन करके मार्ग की सारी थकान दूर हो जाती है। ये वास्तव मैं एक अद्वितीय स्थान है।
मुझे हर्षिल बेहद पसंद है़ एक वाकया बताना चाहुंगा जो मेरी जिंदगी के कुछ यादगार पलों मे से एक है, २०११ मे जब मै परिजनो के साथ गंगोत्री दर्शन करके लौट रहा था, तब खाना खाने एक ढाबे पर रुका, चुंकि ढाबा थोड़ा छोटा था हमने बाहर बैठकर खाना खाया। सामने भागीरथी, बगल मे सेब के बागान, ऊँचा हिमालय और बिलकुल शांत वातावरण साथ मे गढवाली खाना थिच्वाणी भात। एेसे मनमोहक वातावरण मे , हवा की अजीब सी खुशबू के साथ वो स्वादिष्ट खाना, मे जिंदगी मे नहीं भूल पाऊंगा।
चमोली जिले मे स्थित बद्रीनाथ ,माना गाँव, सतोपंथ झील ,स्वर्गारोहिनी ख़ूबसूरत पर्यटक सथल हैं। क्यूकी अलकननंद नदी घाटी मे स्थित ये जगह शांति प्रिय जगह है। कठिन परिसितीतियो के बाद भी माना गाव के लोग इस दुर्गम जगह पर रहते है। और पलायन को रोके हुए है।
“एक दिलचस्प वाक़या”
हर वर्ष की भाँति इस बार अप्रैल 2015 मे मै अपने कुछ दोस्तों के साथ बद्रिनाथ माना गांव सतोपंथ झील गया था। दर्शन जैसे ही हुए तो पता लगा की सड़क भसखलन के कारण बंद हो गयी है। फिर हम वही रुक गए। पर रोड खुलने के कोई आसार नही थे।हमारा 5 दिन की यात्रा 12 दिन मई बदल गयी।पैसे भी खत्म हो गए थे आस पास कोई ATM भी नही था।फिर एक स्थानीय पहाडी भाई जी ने हमारी हेल्प की बिना शर्त के। और हम सुरक्षित अपने घर पहुँचे। यही हमारे उत्तरांचली लोगो की पहचान है जो अतिथि देवो भवः को पूरी तरह से निभा रहे है।
बेशक पूरा उत्तराखंड ही पर्यटन की असीम संभावनाएं समेटे हुए है,परंतु जो खूबसूरती ईश्वर ने जोहार घाटी को दी है वो कही और नहीं मिल सकती| सभी आधुनिक सुख सुविधाओँ के साथ प्राचीन रीति रिवाज़ों का मिश्रण अगर अनुभव करना है तो मुनस्यारी से बेहतर स्थान पूरे संसार में कहीँ न होगा। ये अतिशयोक्ति नहीं है के कहा भी जाता है “एक मुनस्यार,आधा संसार”।
केदारनाथ आपदा से एक माह पुर्व मै अपने परिवार के साथ बद्रीनाथ गया था वापस आते समय हम चमोली रूके अगले दिन करीब 11:00am पर हमने max जीप चोपता के लिये ले ली .मौसम कुछ मिला जुला सा था। जब हम जंगल मे 5 6 किलोमीटर चढ ही थे तभी एक बुजुर्ग अचानक पहाड से ऊपर चढ कर सडक पर आ गये उन पर काफी सामान भी था। वो हाँफ कर सडक पर ही बैठ गये जैसे ही हम उनके नजदीक पहुचे मैने चालक से गाडी रूकवाई व उतरकर उनसे पुछा, “बाबा कहाँ जाओगे?” बाबा, “बेटा केदारनाथ जा रहा हूँ।”
मै, “बाबा इतना सामान लेकर खडे पहाड़ पर क्यो चड़ रहे हो ये तो जंगल भी घना है।”
बाबा, “बेटा किसी ने बता दिया की पखडन्डी से जाने पर रास्ता कम हो जायेगा पर ये बहुत भारी है।”
हमारे पास दो सीट खाली थीं बाबा को हमने अपने साथ ले लिया और चोपता पहुँच गये बाबा को हमने अपने साथ तुंगनाथ चलने के लिये कहाँ तो वो तैयार हो गये मैने उनका सामान नीचे दुकान पर ही रखवा दिया शाम तक सब नीचे आ गये बाबा को तुंगनाथ के द्वार पर बने मंदिर मे सोने का स्थान मिल गया, हमने भी बाबा से विदा लेकर चमोली कि ओर चल दिये,
परिजन इस बात से खुश थे की शायद भोलेनाथ ही थे ऊधर बाबा भी कह रहे होगे की भोले बाबा ने मदद भेजकर तुंगनाथ जी दर्शन करा ही दिये वर्ना मै तो सीधा केदारनाथ ही पहुँचता, मै किसी मंदिर मे नही जाता पर दुसरो कि मदद के लिये तैयार रहता हूँ मुझे इसी मे सुख मिल जाता है |
Dayara, Uttarkashi kyuki waha jaa ke mehsushhota h ki wo jagha swarg hai aur waha ka peaceful environment sabse acha lagta h. Hum 2001 me waha gaye they meri family or hamare mama ki family usstime Raithal gaon tak hi road thi, uss time to waha ropeway bhi nahi they jab 12 km paidal gaye to laga hum yaha kyu aa gaye? par jab Dayara Bugyal or kadam rakhe to laga ki jaise kisi jannat me pahuch gaye hai.
Sham hone pe hume rahne ke liye ek in gau walo se baat ki to unnhone bataya ki chaan(HUT) h jaha koi nahi rahta hai sirf waha tourist log raat ko rukte h, khane ke liye hum apne sath rashan le gaye they wahi raat ko banaya lekin gaon walo ne iss tarah hamara khayal rakha ki hum jaise unke khud ke guest honge. Waha ka paani itna thanda the ki haath tk ni lagaya gya. Gaon walo ne hume apni bhais ka doodh diya raat ko chai ke liye agle din hum nashta krke Bakriyatop Ko chal diye jo shayad Dayara se 5 km dur tha wo bhi paidal jab hum waha pahuche to waha ka najra to itn khubsurat tha jo bayan krna bhi shayad muskil ho. Charo taraf fhool hi fhool aur samne barf se lage Mountains or pal pal lagta kohraa jaise hamare sath khail khel raha ho aur waha se dikha najara Kya gajab ka tha.
Sham ko wapas Dayara aaye aur abate waqt khub Chhach (Mathha) piya aur itna thak gaye ki raat ko Us so chaan(hut) me me khichdi banayi aur kha k so gae. Agle din subha hi paidal hi niche Raithal gaon to aaye or waha sevapne ghar Maneri (UTTARKSHI) aa gaye. Agar kbhi zindagi me mouka mila to dobara Dayara Bugyal zarur jaaunga.
Auli is the best tourist place I have ever visited in north India. Auli is famous for snow fall and it’s a type of mini Switzerland where you can see snow skiing championship every year in the month between Dec to Feb. You can have a ride in chairlift as well as you can enjoy 4.5 km ride in ropeway and it’s the largest track in Asia and no 2 in world, fare is also not too much only 500-700 as of now. Everyone can rent snow skiing board and learn snow skiing in short time 1 day to 7 day is enough to learn it. Food is quite good there, Chinese food is my favourite you can also have all type of food there in hotels. Bar is also there so it’s very nice to have alcohol in cold environment.
I visit Auli when there us snowfall, actually, we all friends used to study in GIC Joshimath and Auli is 16 km far from Joshimath so during snowfall we used to bunk from college and take food and drinks with us and used to travel Auli by foot. It is only 2 hours away from Joshimath on foot. We enjoyed our best days there and still we go whenever we get time to visit.