Palayan Ek Chintan – Discussion on the Issue of Migration
Venue: Prekshagrah, Pauri Dates: 24 and 25 Oct 2015
१ – उत्तम शिक्षा का अभाव / दिनों दिन शिक्षा का गिरता स्तर।
२ – ग्राम से शहर , आवागमन हेतु उचित संसाधनों का अभाव / ग्रामीण क्षेत्रों में उचित सड़क संसाधनों का अभाव।
३ – उचित चिकित्सा व्यवस्था का अभाव / चिकित्सा व्यवस्था का गिरा हुवा स्तर।
४ – अधिकांश पहाड़ी लोगों की स्वार्थी प्रवृत्ति।
५- बेरोजगारी।
६ – पहाड़ियों का संकोची स्वभाव।
अपनी भौगोलिक सँरचना, अपनी नीतियां, अपना राज्य, अपनी सरकार की अवधारणा के लिये अविस्मरणीय जनसहभागिता और शहीदों की कुर्बानी के फलस्वरूप प्राप्त इस राज्य प्राप्ति के पंद्रह साल पूरे होने को हैं। यह कालखंड राज्य को बाल्यावस्था से निकाल कर अब यौवन की दहलीज पर खडा कर देता है, ऐसी दहलीज जिस तक पहुचने के लिये हर कदम, और आगे किसी भी रास्ते के लिये पडा हर कदम अब इस राज्य की निश्चित नियति तय करेगा।
पंद्रह सालों का वक्त इतना भी कम नही होता कि, क्या खोया क्या पाया का आंकलन करना बेइमानी माना जाय बल्कि यही समय वास्तविक आंकलन का है कि जंहाँ विश्लेषण किया जाये कि क्या सही है और क्या गलत, चौथी सरकार, छह-छह मुख्यमंत्री, ना जाने कितने वर्तमान, निवर्तमान और पूर्व दायित्वधारियों की फ़ौज, सरकारी गैरसरकारी संगठन, घोषित अघोषित बुद्धिजीवी, सरकारी सलाहकार और फ़िर उनके भी अघोषित सलाहकार पर कुल जमा हासिल ये कि फिलवक्त पहाडी राज्य की अवधारणा पर बने इस राज्य के गाँवो पर धीरे धीरे वीरानी छाने लगी है।
देश के शहर और कस्बे जहाँ जवान हो रहे है वहीं उत्तराखंड के गाँव वीरान और बूढे स्पीड स्केल और स्किल के पैमानों पर इस पहाड़ी राज्य की आशायें निरंतर टूट सी रही हैं। निरंतर होते पलायन के कारणो पर चर्चा के दौरान रोजगार को मुख्य कारण माना जाता रहा है किंतु इस भूभाग के लिये ये यक्ष प्रश्न है कि क्या रोजगार के अवसरों का ना होना ही उत्तराखंड के पहाडी जनपदों से पलायन का मुख्य कारण है? या असल कारण कुछ और ही हैं, जिन्हे आज तक सहज स्वीकारोक्ती नही मिल पायी? जिस वजह से नीतियां जो कि इस पहाडी राज्य के अनुरूप होनी चाहिये थी वो नही बन पायी, लिहाजा तीन हजार से अधिक गाँव पलायन का दंश झेल चुके हैं और ये कतार निरंतर लंबी होती जा रही है और ये स्तिथि बहुत चिंताजनक है।
कमोबेश इतनी चिंताजनक कि सीमान्त राज्य होने के कारण राष्ट्र सुरक्षा का भी प्रश्न है, यही वो रैबासी भी हैं जिन्हे प्रथम और द्वितीय रक्षा पंक्ति के रैबासी की पहचान हासिल है। इन सब बिन्दुओं पर आइये “पलायन एक चिंतन” के माध्यम से मनन करते कि वास्तविकता क्या है? जरूरत क्या है? और दिशा क्या होनी चाहिये और हम बढ किधर रहे है?
किसी भी क्रिया के दो पहलू होते हैं चाहे वह पलायन ही क्यों न हो। किसी भी समुदाय,नस्ल या पीढी का ठहराव उसके आर्थिक,सामाजिक व शैक्षिक विकास पर लगाम लगा देता है। तरक्की की चाह में पलायन वाजिब है। पहाड़ से पलायन कर चुके अनेक परिवारों ने हर क्षेत्र में हैरानकुन तरक्की भी की है जो गौरव का विषय है। किंतु शिखर पर पहुंचने के बाद जडों से किनाराकशी करना विनाशकारी होता है। पेड जितना आसमां की ओर रुख करता है उतना ही उसकी जडें जमीन में गहरी होती हैं तभी वह तमाम कुदरती झंझावतों से लडने की ताकत हासिल करता है। अन्यथा जडों से खोखले बडे बडे दरख्तों के मामूली बबंडरों में जमींदोंज होने में ज्यादा वक्त नहीं लगता।
और भी बहुत कुछ जो पलायन रोकने के लिये जरूरी हो तो आईये मिलें 24- 25 अक्टूबर को मंडल मुख्यालय पौड़ी मे और करें जनसरोकारों से जुडे इस विषय पर मंथन, पलायन एक चिंतन।
24 व 25 अक्टूबर, प्रेक्षागृह पौडी में “पलायन एक चिंतन” पर होने वाली गोष्ठी मात्र सभाकक्ष में सिर्फ लफ्फाजी की रस्म अदायगी भर नहीं है। यहाँ अनुभवों का सीधा विनिमय और जमीनी सुझावों पर चर्चा होनी है। इसके नतीजे किताबी दस्तावेज नहीं बल्कि ऐसे फार्मूलों से भरे होंगे जो प्रयोगिक धरातल पर उतरने लायक होंगें। और यह सब आपकी गरिमामय उपस्थिति के बिना संभव नहीं है।
तमाम व्यस्तताओं के बीच, अपनी जिम्मेदारी समझकर चले आईए… विचार गोष्ठी “पलायन.. एक चिंतन…” 24 व 25 अक्टूबर, प्रेक्षागृह पौडी
Official Facebook Page: https://www.facebook.com/PalayanEkChintan
Join this event: https://www.facebook.com/events/636530409782735
Good very good
A realistic issue. Hats off to you for taking such initiative. Keep it up. Hope some day the Government authorities at Dehradun will wake up… involve as many people as possible.
Best wishes