Have you listened to this beautiful poem written by Prasoon Joshi for sisters on the occasion of Raksha Bandhan?
बेहेन अक्सर तुमसे बड़ी होती है,
उम्र में चाहे छोटी हो,
पर एक बड़ा सा एहसास लेकर खड़ी होती है
बेहेन अक्सर तुमसे बड़ी होती है,
उसे मालूम होता है तुम देर रात लौटोगे,
तभी चुपकेसे से दरवाज़ा खुला छोड़ देती है,
उसे पता होता है की तुम झूट बोल रहे हो,
और बस मुस्कुरा कर उसे ढक देती है
वो तुमसे लड़ती है पर लड़ती नहीं,
वो अक्सर हार कर जीतती रही तुमसे,
जिससे कभी चोट नहीं लगती ऐसी एक छड़ी है,
पर राखी के दिन जब एक पतला सा धागा बांधती है कलाई पे,
मैं कोशिश करता हूँ बड़ा होने की,
धागों के इसरार पर ही सही,
कुछ पल के लिए मैं बड़ा होता हूँ,
एक मीठा सा रिश्ता निभाने के लिए खड़ा होता हूँ,
नहीं तो अक्सर बेहेन ही तुमसे बड़ी होती है,
उम्र में चाहे छोटी हो, पर एक बड़ा सा एहसास लेकर खड़ी होती है|